भगवत गीता हिन्दूओं का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। जिसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। यह श्लोक श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन को कहा था।
जब महाभारत का युद्ध होने वाला था। और अर्जुन युद्ध करने के लिए तैयार नहीं थे।
Bhagawat geeta popular shlok in hindi | बेस्ट गीता श्लोक इन हिंदी
1. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
मतलब :- श्री कृष्ण कहते हैं की जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अपने स्वरूप की रचना करता हूँ।
साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्कर्मियों का विनाश करने के लिए, धर्म की स्थापना के लिए मैं युग युग में मानव के रूप में अवतार लेता हूँ।
2. जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु्धुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हस।।
मतलब :- जिसका जन्म हुआ है उसका मृत्यु निश्चित है और जिसका मृत्यु हुआ है उसका जन्म भी तय है। इसलिए तुम्हारे अनिवार्य कर्तव्यपालन के समय तुम्हारा शोक करना उचित नहीं।
3. यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:।।
मतलब :- जो दुसरों को कष्ट नहीं पहुँचता। किसी दुसरे के बहकावे में नहीं आता। जो सुख-दुख, भय-चिंता में एक समान हैं। वह मुझे अत्यन्त प्रिय है।
Bhagawad gita slokas in hindi
4. क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
मतलब :- क्रोध से मनुष्य की मतिभ्रम हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है।
5. सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
मतलब :- सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
6. नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत।।
मतलब :- आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
Bhagwat geeta shlok | प्रसिद्ध गीता श्लोक
7. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥
मतलब :- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है। वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।
8. यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
मतलब :- कछुवा अपने अंगों को जैसे समेट लेता है। वैसे ही यह पुरुष जब सब ओर से अपनी इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से परावृत्त कर लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
9. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
मतलब :- श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण, जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो उदाहरण प्रस्तुत करते है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।
10. हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:।।
मतलब :- यदि तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे। इसलिए उठो, हे कौन्तेय , और निश्चय करके युद्ध करो।